चातुर्मास
चातुर्मास की शुरुआत आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से होती है, इस समय सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है। और अंत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देवप्रबोधिनी एकादशी पर होता है, जब सूर्य तुला राशि में होता है।
माना जाता है की इस दौरान देवी-देवता निद्रावस्था में होते हैं, देवशयनी की संधि होती है देव + शयनी, यानि निद्रा; और अंत में वह जागृत अवस्था में लौटते हैं, देव + प्रबोधिनी = देवप्रबोधिनी यानि जागृति। चातुर्मास का काल विवाह जैसे समारोह के लिए अशुभ समझा जाता है, लेकिन तपस्या, व्रत एवं पवित्र स्नान के लिए उचित बताया गया है।
चातुर्मास, अर्थात ‘चार महीने’, सामान्यतः अंग्रेजी महीना जून-जुलाई के वर्षाकालीन ऋतु में शुरू होता है और अक्टूबर-नवंबर में समाप्त होता है। विभिन्न भाषाओं में इसे अलग- अलग नामों से जाना जाता है: तेलगु में तोलि, मराठी में आषाढ़ी एकादशी और उत्तरी प्रदेशों में महा एकादशी, देवपोली, पद्मा एकादशी, हरी-शयनी एकादशी भी नाम है।
प्रत्येक रीत की तरह चातुर्मास के पीछे भी तर्क है। मानसून में रोग बड़ी शीघ्रता से फैलते हैं, और उपवास एवं पवित्र संस्कार सेहत बनाये रखने में बहुत सहायता करते हैं। इस मौसम में पेट में गैस होना, पचानेकी शक्ति कम होने, और पेट की बीमारियोंजैसी तक्लीफोंसे दूर रहने के लिए चातुर्मास में प्याज और लहसुन खाना उचित नहीं मानाजाता हैं।
भलेही विवाह, उपनयन जैसी रसमें इस दौरान नहीं की जातीं लेकिन चातुर्मास त्योहारों से भरा है जो ईश्वर की महिमा का जश्न मनाते हैं जैसे गुरु पौर्णिमा, जन्माष्टमी, रक्षा बंधन, गणेश चतुर्थी, नवरात्री, दशेहरा और दिवाली।
आइये चातुर्मास से जुडी एक कथा पढ़ें। बली नामक एक असुरोंके राजा थे, जो भक्त प्रह्लाद के पोते थे। उनकी सत्ता त्रिलोक में फैली हुई थी। इस बात से भयभीत होकर इंद्रदेव भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना करने आ पहुँचे। भगवान विष्णु वामन अवतार धारण कर बली को मिलने गए, और केवल तीन क़दमों जितनी जमीन तोहफे के तौर पर मांगी। राजा हस पड़े, लेकिन यह दान देने केलिए मान गए।
लेकिन हुवा कुछ औरहि, चमत्कार से वामन का आकर विशाल होता गया, इतना बड़ा की पृथ्वी उसके एक कदम में समा गयी, और स्वर्गलोक दूसरे कदम में। दैत्यराज समझ गए की यह कोई और नहीं बल्कि भगवान विष्णु की लीला है, और अपनाही शीश उन्हें तीसरे कदम हेतु अर्पण किया। यह सच में महानता का प्रतीक है; मना करने के बजाय बली ने अपना वडा पूरा करने के लिए अपनी स्वयं को ही अर्पण कर दी। वामन ने उसका स्वीकार कर अपने तीसरे पग से बली को वापिस नर्क भेज दिया।
बली के भक्ति भाव से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने उसे एक वरदान मांगने की अनुमति दी, तो बली ने केवल एक इच्छा प्रकट की, कि भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी हर वर्ष का एक तिहाई समय उसके निवासस्थान में गुजारें। इस वजह से चार महीनो के लिए भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी बली के घर आराम करते हैं और उनके भक्त ध्यान व प्रायश्चित करते हैं।
इस वर्ष 2022 में चातुर्मास १० जुलाई (रविवार) को शुरू होकर ५ नवंबर (शनिवार) पर समाप्त होगा।
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