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गुण मिलन और वैवाहिक सौख्य

आज-कल उच्च शिक्षा और स्थ्ययी व्यवसाय पर ज्यादा अवधारण होने की वजह से शादी की उम्र २७-२८ साल से ज्यादा होती है। स्वाभाविक रूप से अन्य वैवाहिक प्रक्रियाएँ भी थोड़ी देर से होंगी।


जब किसी का विवाह तय किया जा रहा हो, उनके सुखी जीवन की संभावना को परखने के लिए रक्त वर्ग, रक्त विकार, अंडाशय परीक्षण, बंध्यता, वंशागति, लैंगिक संक्रमित रोग, हिव इत्यादि वैद्यकीय जाँच की जाती है। यह कई युवकों को आधुनिक लगता है, इसलिए अगर उन्हें कोई कुंडली मिलाने का सुझाव दे, तो वह कहते हैं “नहीं, हम उसमें विश्वास नहीं रखते, हम मेडिकल टेस्ट करेंगे, वे वैज्ञानिक तकनीकें हैं”


संपन्न और आनंदमयी वैवाहिक जीवन के लिए दम्पति का वैचारिक, शारीरिक और मानसिक सहमति होना महत्त्वपूर्ण है। इसी कारन हज़ारों वर्ष पूर्व ऋषि-मुनियों ने इन घटकों को समझकर नए दाम्पत्य के लिए कुछ सिद्धांत और नियमों की रचना की। इन्ही को हम गुण मिलन के नाम से जानते हैं।


जो चीज़ें हज़ारों रुपियों के परिक्षण से बताई जाती हैं, वही वधु-वर की कुंडली परख कर और उनके गुण मिलाकर बताई जा सकती हैं। गुण मिलन में जाँच से कई ज्यादा विषयों का अभ्यास हो सकता है।


नाड़ी – यह दोनों की प्रजनन क्षमता और दर्जे को दर्शाती है। यदि एक-नाड़ी दोष हो तो जनन में मुश्किलें आ सकती हैं या फिर संतति सुख से वंचित रहने की संभावना होती है। आज के युग में इसे प्रजनन परीक्षण के द्वारा सिद्ध किया जाता है।


योनि – जैसे जीवनसाथी मानसिक और वैचारिक तौर से जुड़े होने चाहिएँ वैसे ही वह शारीरिक दृष्टी से पूरक होने चाहिएँ। गुण मिलन में योनि सूत्र इस बात को योग्य रीति से परखता है।


गण – जोड़ीदार की वैचारिक अनुकूलता दर्शाता है।


इसके साथ कई और घटक हैं जिन्हे साथ में अष्टकूट कहते हैं; वे गाणितिक स्वरुप से जोड़ी की योग्यता बताते हैं।
साथ ही, वधु और वर की कुंडलियों के अध्ययन से उनके व्यक्तिमत्व और आरोग्य का अनुमान हम लगा सकते हैं, आरोग्य सम्बन्धी कोई संकट, आयुर्मान, स्वाभाव, व्यसन, व्यवसाय, और कई बारे में हम अंदाज़ ले सकते हैं। यदि उनमें से किसी के नसीब में वैवाहिक सुख कम हो, या उसमें बाधाएँ हों, तो वह भी कुंडली में नज़र आता है।


आज हज़ारों सालों से इसी पद्धति से वधु-वर के गुण मिलाये जाते है, सिर्फ परंपरा है इसलिए नहीं बल्कि क्योंकि वह एक विचारपूर्वक रचा गया सिद्धांत है। भले ही आज इन विचारों को आधुनिक सूत्रों की साथ मिली हो, इसका अभ्यास हमारे शास्त्र ने कई साल पहले से गहराई से किया है, और उसे इस प्रकार प्रस्तुत किया है की सामान्य व्यक्ति भी उसे समझ सके।
इसका मतलब यह नहीं की कुंडली और गुण मिलने से उस जोड़ी का जीवन बिलकुल ही सुखमयी और दोषरहित होगा। बोध यह है कि वैज्ञानिक जाँच सिर्फ आरोग्य परख सकती है किन्तु वेदिक शास्त्र वैचारिक, शारीरिक और मानसिक योग्यता भी परखता है जो आवश्यक है और लाभदायक भी।


कर्मा सिद्धांत नुसार वही घटित होगा जो भाग्य में लिखा है, पर हम साथीदार चुनते वक़्त दक्षता से आगे बढ़ें, बाकी सब परमेश्वर कि इच्छा!

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