मांगलिक
आज की तारीख तक मेरे पास विवाहसंबंधी प्रश्न पूछनेवालों की संख्या बहुत है। जिनकी कुंडलियों में मंगल होता है, विशेषतः उनके माँ-पिता, इतने संभ्रमित होते है, और १० जगह कुंडली दिखाकर मन में चित्र-विचित्र कल्पानाएँ भर लेते है। असंतुष्ट होकर, या संभावित उत्तर न मिलने कारण ११वे ज्योतिष के पास चले आते हैं।
पत्रिका में मंगल होने का मतलब?
पहले यह समझ लें कि प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में सारी १२ राशियाँ और ९ ग्रह होते ही हैं। कुंडली के कुछ विशिष्ट भावों में जब मंगल स्थित हो, तब उसे मंगल की पत्रिका या मांगलिक पत्रिका कहते हैं।
कुंडली में १२ घर/भाग होते हैं जिन्हें ज्योतिष भाव कहते हैं। उनमेंसे पहले, चौथे, आठवे, या बारहवे भाव में (साथ दिए चित्र में देखें) यदि मंगल स्थित हो तो जातक को मांगलिक समझा जाता है। जब इन भावों में मंगल हो तब व्यक्ति पर मंगल का विशेष प्रभाव दिखता है।
मूल स्वरुप में हमें मंगल को समझना महत्वपूर्ण है। मंगल ग्रह सूर्यमंडल का सेनापति है। सबके रक्षण की ज़िम्मेदारी उसपर है। अब यह सेनापति है तो शौर्य और ताकद का प्रदर्शन तो होगा। ऐसे व्यक्ति शक्तिशाली और एकनिष्ठ होते हैं, और दिमाग में कुछ न कुछ योजनाएँ खोज रहे होते हैं। झट से चिढ जाते हैं, सब पर दरारा होता है, और कुछ इनसे डरते भी हैं, और वह बहुत अनुशासनप्रिय होते हैं। कुछ बार उन्हें कर्त्तव्यपालन हेतु कठोर होना पड़ता है, और मंगल है अग्नि तत्त्व का, इसलिए और चिड़चिड़े और हठी होते हैं। समझने हेतु यह उदहारण लीजिये बाहुबली के कट्टप्पा का।
अब जान गए मंगल का स्वाभाव?
जब मंगल प्रथम भाव में स्थित होता है तो उस व्यक्ति की (जिसकी कुंडली है) उसे मंगल के बहुतांश स्वभावगुन मिलते हैं (बिलकुल यही स्वाभाव नहीं, उसके भी अनेक नियम होते हैं)। चौथे भाव को मन का कारक कहा जाता है, यदि मंगल वहाँ हो तो व्यक्ति के मन पर मंगल का प्रभाव दिखता है।
मांगलिक पत्रिका होने का अर्थ यह नहीं की व्यक्ति दुष्ट है अथवा किसी भयानक बिमारी से संतप्त है। बस यही कि वह स्वाभाव में दूसरों से थोड़े काम नरम होते हैं। कई जगह पर मंगल होने को दोष का ठप्पा लगाया जाता है, जिससे मैं सहमत नहीं। मंगल ने अकेले कुछ हानि या दुष्कर्म करने कि संभावना दुर्लभ है। यदि कुंडली में और कोई ग्रह हो जो उच्छाद करे, तो उसे दोष ठहराना योग्य है। किसकी पत्रिका के लिए एक ग्रह शुभ है या दुष्कर्मी इसका निर्णय करने के लिए कई मापदंड (पैरामीटर्स) हैं। सिर्फ एक घातक को देख उसे दोष ठहरना क्या अन्याय नहीं लगता?
इस वजह से जिसे ज्योतिषविद्या की कल्पना नहीं, जानकारी नहीं, ऐसे सामान्य घबरा जाते हैं, या गड़बड़ा जाते हैं।
आजकल मुद्रा के लालच में अनेकों को पत्रिका में न बनने वाले योगों के लिए शांति, होम, पूजा, रत्न जब बताये जाते हैं तो बुरा लगता है। इन कामों की वजह से जनता का ज्योतिषशास्त्र से विश्वास घटता जा रहा है यह कोई समझता ही नहीं।
“यदि कुंडली मंगल की हो तो क्या किया जाए?” ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं। इसके लिए मंगल की अवस्था, उसके डिग्रीज, स्थान, इन सबकी परख करना आवश्यक है। उसके नुसार योग्य साथीदार चुनना पड़ता है। ऐसे व्यक्तियों के लिए योग्य हो सकती है शनि की पत्रिका। जैसे चित्र में मंगल है, वहीं यदि शनि हो तो वह शनि की पत्रिका हुई। तो शनि की ही पत्रिका क्यों देखें?
कारण यह की मंगल जो ऊर्जा है, शठो शनि है स्पंज। मंगल की ताकद या ऊर्जा को झेलने या शोषने की निपुणता केवल शनि में है। आप यदि स्पंज के तकिये को मुक्का मारें तो क्या होता है? तकिया आपकी शक्ति को शोष लेगा और बस हो गया। अब यही क्रिया अगर आप किसी भक्कम वास्तु पर करें, तो आपके हाथ को चोट लग जाएगी और शायद वास्तु टूट जाऐगी। यही अंतर है मंगल-शनि और मंगल-मंगल के जुड़ाव में।
मंगल शनि शांतिपूर्वक रह सकते हैं परन्तु दोनों की पत्रिका मंगल की हो तो एक के हाथ में थाली और दूसरे के बेलन देने सामान होगा ।
तो पहले यह जान लें कि मंगल की ताकत है कितनी और उसके हिसाब से चुनिए अनुरूप साथी।
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