भाग - १ वर्ण कूट (गुण मिलन)
मेरे पिछले लेख में हम ने वधु-वर के सुखी वैवाहिक जीवन के लिए गुण मिलन की अहमियत और उसके फायदे देखे। अब आगे देखते हैं गुण मिलन का क्या और कैसे उपयोग करना चाहिए। ये समझने के लिए आपको ज्योतिष विद्या का ज्ञान होने की कोई आवश्यकता नहीं है। पंचांग में इसके बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध है।
वर्ण, वैश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गण, राशि कूट, और नाड़ी मिलकर बनता है अष्टकू जो वधु-वर एक-दूसरे के लिए कितने अनुरूप है ये बताता है। हर कूट अपने निर्धारित गुण देता है, जिससे कुल मिलाके अष्टकूट में ३६ गुण बनते है।
आज हम जानेंगे अष्टकूट में से पहला “वर्ण कूट” जो ३६ गुणों में ज्यादा से ज्यादा १ गुण का योगदान देता है। 
वर्ण का आज की जाति-पद्धति से कोई संबंध नहीं है। वेदिक काल में इंसानों को काम देने के लिए उनका वर्गीकरण उस इंसान के गुणवत्ता से किया जाता था न की परिवार या परंपरा देख कर। वेदों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन ४ व्रणोंका निर्माण इंसान की गुणवत्ता और योग्यता को दर्शाने केलिए किया गया है। लेकिन कलियुग में इसे इंसान ने राजकीय फायदे केलिए जाती विवाद में परिवर्तित कर दिया है।
एक ब्राह्मण के घर जन्मा इंसान क्षत्रिय गुणवत्ता का हो सकता है या फिर किसी सूद्र के यहाँ जन्मे इंसानमे वैश्य गुणवत्ता हो सकती है।
ब्राह्मण वर्ण जिसे विप्र भी कहा जाता है, सीखने की और समझने की क्षमता देता है, साथ ही साथ गरिमा, धार्मिक गांभीर्य, और पुरोहिताई के गुण प्रदान करता है।
क्षत्रिय वर्ण मजबूत शरीरयष्टि, गर्व, मेहनतीपन और बेख़ौफ़ रवैये को दर्शाता है।
वैश्य वर्ण व्यापारिक गुण, व्यावसायिक कौशल, और धन व्ययवस्थापन की बारीकियाँ बताता है।
शूद्र वर्ण दूसरों की सेवा कार्य और आदेशों के पालन से संबंध रखता है।
आईए ‘शूद्र’ शब्द की असली परिभाषा समझें। जो व्यक्ति ब्राह्मण/क्षत्रिय/वैश्य से काम क्षमता रखता है उसे शूद्र वर्ण में श्रेणीबद्ध किया जाता है। यह व्यक्ति बाकी तीन वर्णों के सहाय्यक की भूमिका निभाते हैं।
हर वर्ण जब अपने ही सामाजिक वर्ग से मिलाया जाए तब पूरे अंक हासिल करता है। गौर करें तो यह देखा जा सकता है की वर का वर्ण समान या निचले वर्ण से मिलाया जा सकता है परन्तु वधु का वर्ण समान या ऊपरी वर्ण से ही मिलाया जा सकता है। यह व्यवस्था शायद पुरुषप्रधान समाज में महिलाओ की उन्नति के हेतु बनाई गयी हो, क्योंकि उच्च वर्ण वधु का सम्मानिक और आर्थिक रूप से बेहतर ख्याल रख सकता था।
यदि वधु-वर वर्ण कूट शुन्य हो/मिलता न हो, फिर भी विवाह संभव है, बस इस स्तिथि में आपसी सहमति बाकियों से काम हो सकती है।
वधु-वर के वर्ण कूट को मिलाने के लिए निम्न कोष्ठक का इस्तेमाल करें:
वर → वधू ↓  | ब्राह्मण(विप्र) | क्षत्रिय | वैश्य | शूद्र | 
| ब्राह्मण(विप्र) | 1 | 0 | 0 | 0 | 
| क्षत्रिय | 1 | 1 | 0 | 0 | 
| वैश्य | 1 | 1 | 1 | 0 | 
| शूद्र | 1 | 1 | 1 | 1 | 
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